महाविद्यालय का कुलगीत
हे प्रज्ञा के पीठ, हे ज्ञान के दीप,
शत् शत् तुझे नमन है………………..
सदियों से जिस धरती का, गंगा ने किया प्रक्षालन,
तमसा ने तम हर लिया, सरयू ने किया है पालन।
ऋषि भृगु, बलि वीर व दानी, मंगल का तू चमन है।।
शत् शत् तुझे नमन है……………
मानव के निर्माण का हम, देखें सदा ही सपना,
सद्भावना हो सबमें, बस लक्ष्य मात्र यह अपना।
इस पवित्र तेरी छाया में, मानवता का उन्नयन है।।
शत् शत् तुझे नमन है…………….
दान ज्ञान का दे सबको, नव राष्ट्र का नित उदय हो,
तेरा हो उत्कर्ष सदा ही, तेरी सदा ही जय हो।
है किसान की गौरव गाथा, तेरा सदा वन्दन है।।
शत् शत् तुझे नमन है………….
रकसा की सरजमीं से, आलोक ज्ञान का फैलाये,
बाबा भगतहा की किरणें, ज्योतिर्मय विद्या बिखरायें।
तेरा मस्तक हो ऊँचा, हरदम तेरा अभिनन्दन है।।
शत् शत् तुझे नमन है………..
ज्ञान चक्षु मानव को दे, मन भय और शोक रहित हो,
अनुशासित करूणामय जीवन, माँ भारती को अर्पित हो।
धवल प्रकाश बने वसुधा का, मन में ऐसी लगन है।।
शत् शत् तुझे नमन है…………..
परमेश्वर की हृदयस्थली, कर्मभूमि लल्लन जी की,
शान वहीद, खालिक की हो, पहचान सच्चिदानन्द की।
रामदरश के मानस का तू, एक अनमोल रतन है।।
हे प्रज्ञा के पीठ, हे ज्ञान के दीप, शत् शत् तुझे नमन है।।